Sunday, January 30, 2011

ग़ज़ल] नागफ़नी आँखों में पाली तब जाना !

ग़ज़ल] नागफ़नी आँखों में पाली तब जाना !



---------------------------------------------


नागफ़नी      आँखों में     पाली    तब जाना ;
दुखते दिल के क्या हैं मानी ? तब जाना !


मूरख मन जब हर किस्से से ऊब गया ;
क्या होती है     प्रेम-कहानी     तब जाना !


खेल नहीं       है रोकर मन बहलाना भी
सर से ऊँचा हुआ जो पानी तब जाना !


किस दुनिया में पहुँच गई है बालकथा ?
लुप्त हुए सब      राजा-रानी तब   जाना !


मन से चैन, नयन से निदिया, दूर हुई ;
अपने दिल की कारस्तानी, तब जाना !


मेरा होकर धड्का     उसकी खातिर वो ;
अपने दिल की     नाफ़र्मानी, तब जाना !


दुश्मन से     ये कैसा     रिश्ता    है मेरा ;
दिल ने बढ्कर की अगवानी, तब जाना !


उम्र   ढली तो, गाड़ी बंगला    कब   भाए;
भूख थीं सारी ये जिस्मानी, तब जाना !


मुझ जैसा भी अदवी दुनिया में पहुँचा ;
वो   है कितना ओघडदानी तब जाना !




डा० अजय जनमेजय {बिजनोर}


Friday, January 21, 2011

बिटिया गंगा नीर

बिटिया घर का है सकूँ' ,  बिटिया रिमझिम रैन /
जिस घर में बिटिया नहीं' , वो ही घर     बैचैन //
बडे भाग जो बन      सका ,  तू बेटी का बाप /
हर लेती    है बेटियाँ' ,     सारे     दु;ख  संताप //
बेटा है शीतल हवा .,   बिटिया     गंगा नीर /
मात पिता के वास्ते,'   दोनो ही     जागीर //
किसने हैं   पैदा किये ,    ये     बेहूदा तर्क /
बेटी बेटा ऐक से',  क्यों करते     हो फ़र्क //